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कविता

समाप्ति दोहे

मुंशी रहमान खान


।। चौपाई ।।

जो कहना था सो लिख दीन्‍हा। पावहुगे तुम आपन कीन्‍हा।। 1
मानहु चहै न मानहु भाई। हुई है न्‍याय ईश घर जाई।। 2
पैहौ करनी का फल आगे। फिर नहिं लगे कछु हाथ अभागे।। 3
नहीं दोष अब मोहिं कछु भाई। जस ग्रंथन कह दीन्‍ह सुनाई।। 4


दोहा

जो कहना था लिख दिया अपने मन का भाव।
मानहुगे हुइ है भला नहिं मानहु पछिताव।। 1
नहीं जरूरत और कछु अब जो कहें रहमान।
नीक सिखावन देह कर पूरन कीन्‍ह बयान।। 2
बिनु गुरु विद्या नहिं मिलै बिनु विद्या नहिं ज्ञान।
ज्ञान बिना रहमान नर नहिं चीन्‍हें भगवान।1 3
घर का नंबर चार है देइकफेल्‍त मम ग्राम।
सुरिनाम देश में वास है रहमानखान निज नाम।। 4
लेतरकेंदख स्‍वर्ण पद दीन्‍ह क्‍वीन युलियान।
अजर अमर पदवी रहै प्रेंन्‍स देहिं भगवान।। 5
कृपा कीन्‍ह जगदीश ने अरु गुरु हुए सहाय।।
मुझ वृद्ध बलहीन की दीन्हीं आश पुराय।। 6
निधि पदार्थ ग्रह चंद्र की है ईस्‍वी वर्ष।
मास ताप तिथि निगम को पूरन कीन्‍ह सहर्ष।। 7

''इति दोहा शिक्षावली समाप्ति''

 


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हिंदी समय में मुंशी रहमान खान की रचनाएँ